छत्तीसगढ़

छत्‍तीसगढ़ के इस गांव में भूख से लड़ती है जिंदगी, यहां नमक और राशन के लिए जान दांव पर लगाते हैं ग्रामीण


बस्तर संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 250 किमी दूर स्थित बीजापुर जिले के गोरला पंचायत के आश्रित गांव मीनूर के ग्रामीण बारिश के दिनों में नमक और राशन के लिए संघर्ष का सामना कर रहे हैं। ग्रामीणों की रोजमर्रा की जिंदगी में भूख मिटाने और पेट भरने के बीच में चिंतावागु नदी एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है।

बीजापुर। बस्तर के हाट-बाजार में भोले-भाले आदिवासियों से नमक के बदले बहुमूल्य चिरौंजी (एक प्रकार का सूखा मेवा) लेने के दृश्य अब दिखाई नहीं देते, पर नमक के लिए अब भी यहां के आदिवासियों को जान दांव पर लगाना पड़ जाता है।

बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 250 किमी दूर स्थित बीजापुर जिले के गोरला पंचायत के आश्रित गांव मीनूर के ग्रामीणों की भूख और पेट भरने के बीच में चिंतावागु नदी आ रही है। मीनूर के ग्रामीण नमक और चावल के लिए आठ किमी की यात्रा करने के बाद उफनती नदी को पार कर बड़ा सा गंज लेकर राशन लेने गोरला गांव आते हैं। गांव के युवक गंज में सामान रखकर नदी पार करते हैं, ताकि राशन खराब ना हो।

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गंज में राशन भरकर नदी पार करते ग्रामीण।

धुर नक्सल प्रभावित इस गांव में नदी पर पुल नहीं बना है। प्रशासन ने समीप के पंचायत गोरला में चार माह का राशन पहुंचा दिया है, पर पंचायत के आश्रित गांव के लोगों को नदी-नाले पार कर नमक और चावल लेने आना पड़ता है। गुरुवार को खाना पकाने के बड़े से गंज में राशन का सामान लेकर ग्रामीण नदी पार करते दिखे। ग्रामीणों ने बताया कि कई वर्ष से वे इसी तरह वर्षा ऋतु में राशन लेने आते हैं।

170 परिवार की इस आदिवासी बस्ती में रहने वाले गोपक्का यालम ने बताया कि सुबह घर से राशन लेने निकले थे। अब शाम के चार बज चुके हैं। गंज में राशन भरकर गांव के युवक नदी पार करने में सहायता कर रहे हैं। शुक्रबाई कुरसम ने बताया कि हर वर्ष बारिश में उन्हें इस परेशानी से जूझना पड़ता है। वह धान खरीदने पटनम गई थी, आते-आते शाम ढलने लगी है। वे अब प्रतीक्षा में है कि किसी तरह नदी पार कर ले और अंधेरा होने से पहले घर पहुंचे।

67 वर्षीय मट्टी चन्द्रय्या कहते हैं कि वे बचपन से इस तरह की स्थिति देख रहे हैं। अब वे उम्रदराज हो चुके हैं, पर गांव की स्थिति नहीं बदली है। समैया पुरतेट ने बताया कि कई वर्ष से पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं, पर इस ओर कोई ध्यान नहीं देता है। दो दिन पहले ही गांव के युवक की इस नदी को पार करते हुए डूबने से मौत हो गई।

बीजापुर कलेक्टर अनुराग पांडेय ने कहा, बारिश पूर्व पहुंचविहीन गांव के निकटतम पंचायतों में राशन पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। जिले में 53 पंचायत में चार माह का राशन पहुंचा दिया गया है। मिनूर गांव का राशन गोरला पंचायत में रखवाया गया है। ग्रामीणों की शिकायत मिली है। समस्या के समाधान के लिए चिंतावागु नदी पर आठ करोड़ रुपये की लागत से पुलिया निर्माण के लिए प्रशासकीय स्वीकृति शासन से मांगी गई है।

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मीनूर तक पक्की सड़क नहीं, हमेशा रहती बिजली बंद
भोपालपटनम तहसील के अंतर्गत आने वाले मीनूर गांव तक पक्की सड़क नहीं बनी है। गांव में कुछ वर्ष पहले विद्युत लाइन बिछा दी गई है, पर ग्रामीणों का कहना है कि अधिकतर बिजली गुल रहती है, लो-वोल्टेज की भी समस्या है। गांव की यालम नीला नें बताया कि गांव में अस्पताल नहीं है। गांव में किसी के रोगग्रस्त होने पर उसे गंज में बिठाकर नदी पार कर गोरला के अस्पताल लाते हैं।

मद्देड़ तहसील के अंतर्गत आने वाले चिंतावागु नदी के उस पार दर्जनों गांव की यहीं व्यथा है। बारिश में एंजोडा, तमलापल्ली, नयापुरा, मुत्तापुर, मामड़गुडा़, गोरगुड़ा, पोषणल्ली समेत कई गांव टापू बन जाते हैं। इसी तरह गंगालूर क्षेत्र में मिंगाचल नदी के उस पार के कमकानार, गोगंला, चोखनपाल, मेटापाल, पदमुर, जारगोया, पेद्दाजोजेर सहित दर्जनों गांव में यहीं स्थिति रहती है।