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“मेकाहारा में इलाज को तरसी महिला: 7 दिन तक भटकती रही, गले की तकलीफ से तड़पती रही गोद में बच्चा लिए; भाई ने दी आत्मदाह की चेतावनी

रायपुर। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल मेकाहारा (रायपुर) में महिला 7 दिनों तक इलाज के लिए भटकती रही। 4 दिनों तक अपने 2 साल के बच्चे को गोद में लेकर एंडोस्कोपी करवाने का इंतजार करती है। वह गले में दर्द से परेशान थी। कुछ खा-पी नहीं रही थी। हताश होकर महिला के भाई ने बहन को जलाने और खुद आत्मदाह करने की चेतावनी दे दी।

तब जाकर डॉक्टर ने उसे जांच के लिए बुलाया। इस दौरान डॉक्टर अपनी जूनियर से कहती दिखी- दे ऑर नॉट मेंटली स्टेबल। इन्हें किसी अच्छे साइकेट्रिक के पास भेजो। इस दौरान पता चला कि शुरुआती जांच करने वाले डॉक्टर ने एंडोस्कोपी के लिए कहा था, लेकिन डॉक्टर्स के बीच कम्युनिकेशन गैप के कारण आगे इलाज नहीं हो रहा था

पहले पढ़िए 3 सितंबर की शाम क्या हुआ

बुधवार को शाम 7 बजकर 45 मिनट पर मेकाहारा के इमरजेंसी डिपार्टमेंट में बने मेडिकल ऑफिसर के रूम में एक भाई अपनी 27 साल की बीमार बहन को लेकर खड़ा हुआ। कुछ देर पहले तक यही भाई अपनी बहन को इलाज नहीं मिलने पर गलियारे पर चीख रहा था।

बहन को जलाने और खुद भी आत्मदाह करने की बात कर रहा था। फिलहाल, हताश खड़ा हुआ है। वहीं दूसरी ओर CMO की कुर्सी पर सीनियर महिला डॉक्टर रश्मि अग्रवाल बैठी मिली। दोनों पक्षों के बीच बातचीत शुरू होती है।

डॉक्टर रश्मि अग्रवाल कहती हैं कि, क्यों तमाशा मचा रखा है। जब तेरी बहन को कुछ हुआ ही नहीं है, तो हम इलाज किस चीज का करें। भाई जवाब में कहता है कि मेरी बहन पिछले 5 दिनों से कुछ खा-पी नहीं पा रही हैं, आप कहती हैं कि कुछ नहीं हुआ। इसके आगे और क्या कुछ बताएंगे।

जानिए क्या है पूरा मामला ?

दरअसल, राजू रात्रे 26 अगस्त को अपनी बहन गायत्री बंजारे (27) को खरोरा से मेकाहारा अस्पताल लेकर आए। गायत्री के साथ उनका 2 साल का बच्चा भी साथ आया। गायत्री के गले में बहुत दर्द था। उन्हें कुछ भी निगलते समय दर्द हो रहा था। वह कुछ खा-पी नहीं पा रही थी।

जांच के बाद डॉक्टरों ने कुछ दवाइयां लिखी, लेकिन दर्द ठीक नहीं हुआ। 29 अगस्त को फिर से कई तरह की जांच हुई। 31 अगस्त को एंडोस्कोपी के लिए सुबह 10 बजे बुलाया गया। लेकिन डॉक्टर ने पर्चे पर इंग्लिश में यह लिखकर वापस भेज दिया कि मरीज ने खाना खाया हुआ है। एंडोस्कोपी संभव नहीं।

हालांकि, गायत्री और राजू ने इस बात से इनकार किया है कि उसने कुछ खाया है। 31 अगस्त से 3 सितंबर के बीच कोई फॉलोअप नहीं हुआ। गायत्री अपने 2 साल के बच्चे के साथ बरामदे पर ही अगले और 4 दिनों तक एंडोस्कोपी करवाने का इंतजार करती है। लेकिन इलाज आगे नहीं बढ़ा।

डॉक्टर बोलीं- ये लोग मेंटली स्टेबल नहीं हैं

भाई राजू डॉक्टर रश्मि अग्रवाल से कहता है कि मेरी बहन पिछले 5 दिनों से कुछ खा-पी नहीं पा रही हैं, आप कहती हैं कि कुछ नहीं हुआ। डॉ. अग्रवाल इसके बाद एक जूनियर डॉक्टर को बुलाती हैं। उससे कहती हैं कि क्यों रखा है इन लोगों को, दे ऑर नॉट मेंटली स्टेबल । रेफर देम टू एनी गुड साइकेट्रिक ।

इसका हिंदी में मतलब हुआ कि इनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इन्हें किसी मनोचिकित्सक के पास भेजो। हालांकि, ठेठ गांव से पहुंचे दोनों भाई-बहन इसका मतलब समझ नहीं सके। इसलिए उनके चेहरे के हाव-भाव और रंगत में कोई विशेष बदलाव नहीं दिखा।

रिपोर्ट में मिला एंडोस्कोपी का जिक्र

आगे भाई कहता है कि, मैडम, एंडोस्कोपी के लिए 4 दिनों से घुमा रहे हैं। डॉ. अग्रवाल कुछ चेक करती हैं और रिपोर्ट के पन्ने इधर-उधर पलटती हैं। सिकुड़न खाए एक पेज पर कहीं पर उनको एंडोस्कोपी लिखा हुआ दिख जाता है।

डॉ. अग्रवाल अपने ‘दे ऑर नॉट मेंटली स्टेबल’ स्टेटमेंट से इतर जाकर पेशेंट से कहती हैं “जो कहा जाता है, वैसा किया करो। एंडोस्कोपी वाले दिन खाना खाया था।”

पेशेंट जवाब देती है नहीं। भाई कहता है- ” इसको पानी पीना मुश्किल हो रहा है। खाना कैसे खाएगी। हम एंडोस्कोपी के लिए गए थे, उन्होंने हमें कल आना कहकर वापस भेज दिया।”

जूनियर से डॉक्टर अग्रवाल बोलीं- इन लोगों को ऐसे ही ट्रीट किया करो

ये सबकुछ मीडिया की टीम के सामने घट रहा था। इसके बाद 2 और डॉक्टरों को बुलाया जाता है। आपस में बातचीत के बाद डॉक्टर मिलकर निष्कर्ष निकालते हैं कि 5 दिनों तक कम्युनिकेशन गैप के चलते महिला का इलाज आगे नहीं बढ़ पाया।

यानी कि 5 दिन तक मरीज भटकता रहा और डॉक्टर्स के बीच उसके इलाज को लेकर कुछ चर्चा ही नहीं हुई। मरीज का भाई इस बीच कुछ बोलने डॉ अग्रवाल उसे फटकार कर कहती हैं जाओ तुम बाहर। हम कर रहें हैं तुम्हारी बहन का इलाज।

इसके बाद सामने खड़ी जूनियर डॉक्टर से अग्रवाल कहती हैं कि, इस तरह से ट्रीट किया करो, इन लोगों को। इन सबके बाद महिला का इलाज शुरू हो जाता है। पूरे मामले पर हमने डॉ रश्मि अग्रवाल का पक्ष जानना चाहा। लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

हॉस्पिटल अधीक्षक बोले- 3 बार एंडोस्कोपी के लिए बुलाया गया
वहीं इस मामले में हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ संतोष सोनकर ने कहा वो अपनी बहन को जलाने की बात कर रहा था, इसलिए उन्होंने मेंटल गुस्से में कह दिया होगा। डॉक्टर ने इंटेशनली नहीं कहा है। उस समय जो स्थिति बनी होगी उस लिहाज से एग्रेशन में कह दिया होगा।

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