छत्तीसगढ़सक्ती जिला

विश्व प्रसिद्ध तीर्थ श्रीराम नगरी अयोध्या पावनधाम में संगीतज्ञ- श्याम कुमार चन्द्रा “श्रीराम महोत्सव सारस्वत सम्मान” से सम्मानित

सक्ती। साहित्य त्रिवेणी के सम्पादक डॉ. कुंवर वीर सिंह द्वारा सम्पादित “राम कथा के पात्र” शीर्षक काव्य दोहा संग्रह ग्रंथ में संगीतज्ञ- श्री श्याम कुमार चन्द्रा जी को “श्रीराम- केंवट संवाद” प्रसंग पर तीन पृष्ठ पर तीस दोहे लेखन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है

इस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन श्रीराम महोत्सव में देश के कोने- कोने से आमंत्रित व उपस्थित वरिष्ठ कवि कवयित्रियों द्वारा श्रीराम विषय पर केन्द्रित अपनी- अपनी कविताओं का पाठ किया गया। इस अवसर पर इस अखिल भारतीय रामोत्सव कवि सम्मेलन में शामिल होकर संगीतज्ञ- श्याम कुमार चन्द्रा द्वारा “राम कथा के पात्र” ग्रंथ में केंवट प्रसंग पर लिखित स्वरचित दोहे का सतस्वर पाठ किया गया, उनके द्वारा स्वरचित व लिखित दोहे इस प्रकार हैं–
1-
रामचरित पावन कथा, महिमा अमित अपार।
रघुकुल सीताराम को, वंदउं बारम्बार।।

2-
जाते हैं वनवास को, पहुंचे गंगा तीर।
भोई वंश मल्लाह से, बोले श्री रघुवीर।।

3-
जल्दी लाओ नांव को, कर दो गंगा पार।
वनवासी श्री राम जी, बोले बारम्बार।।

4-
केंवट मन दुविधा बड़ी, क्या बोलूं मैं आज।
चरण धूल जादू भरी, बिगड़ न जाए काज।।

5-
संत सभा तुलसी कहे, मणि कर्णिका के घाट।
जा भरोस इस जगत को, ते ही जोहत बाट।।

6-
आज निहोर निषाद की, जग के पालन हार।
बात अनूठी कह रहे, गुह जी बड़ी संभार।।

7-
एक अचंभित बात है, कहत फिरे सब लोग।
चरण कमल की धूल में, पत्थर बनते लोग।।

8-
ऐसी बातें कह रहे, महिमा बड़ी अपार।।
पत्थर भी नारी बनी, जानत है संसार।।

9-
मेरी नांव तो काठ की, पत्थर से हरुवाय।
छूते ही जब उड़ चली, कैसे करूं बसाय।।

10-
एकं भरोसे है यही, दूजो नहीं उपाय।
जाना है यदि पार तो, दीजै पांव धुलाय।।

क्रमशः
(दूसरा पृष्ठ)

11-
चरण कमल पद प्रेम से, धुलवाएं महराज।
उतराई ना चाहिए, कुछ ना मांगू आज।।

12-
सत्य कहऊं प्रभु मान लें, पितृ राज सौगंध।
कोप अनुज की ताड़ना, सह जाऊं प्रण बंध।।

13-
हे तुलसी के नाथ प्रभु, कृपा कीजिए आज।
बिना पखारे ना चलूं, मानो जी महराज।।

14-
केंवट वचन श्रवन सुनी, हिय हरषे प्रभु राम।
लखन सीय देखत भये, बिहंसे करूणाधाम।।

15-
कृपा सिंधु प्रभु राम जी, कहत मधुर मुस्काय।
मन चाहे जैसा करो, जिसमें नाव न जाय।।

16-
होत विलम्ब जल्दी चलो, लेलो पांव पखार।
इच्छा तेरी पूर्ण हो, कर दो गंगा पार।।

17-
एक बार जिस नाम से, भव सागर तरि जाय।
त्रैलोकी परमात्मा, मांगत रहे सहाय।।

18-
बलि प्रसंग पावन कथा, जिन वामन अवतार।
त्रिलोकी पग नाप लिए, कथा बड़ी विस्तार।।

19-
नर लीला प्रभु कर रहे, मां गंगा मन सोच।
जग के पालन हार को, मन ही मन संकोच।।

20-
जब प्रभु राम निकट भये, पद नख दर्शन होय।
देव नदी जग तारिणी, अति प्रसन्न मन होय।।

(तृतीय पृष्ठ)

21-
सुरसरि जग में अवतरी, प्रभु नख उद्गम जान।।
श्री शिव महिमा याद की, मां गंगे पहचान।।

22-
प्रभु नरलीला समझ गई, जाने जग की राज।
मनोकामना पूर्ण हो, धन्य हुई मैं आज।।

23-
अति आनन्द निषाद हैं, धन्य धन्य है भाग्य।
देवलोक भी खुश हुए, जागा है सौभाग्य।।

24-
पुष्पों की वर्षा करी, सभी देव जस गाय।
इन सम कोई भक्त नहीं, जगत प्रसिद्धि पाय।।

25-
चरन धूल धोने लगे, कुल परिवार बुलाय।
दर्शन पर्शन सब करें, जीवन धन्य मनाय।।

26-
पुरखा पीतर तर गये, सबकी मुक्ति कराय।
जनम जनम की लालषा, बरद हस्त पद पाय।।

27-
पूर्व जन्म की बात है, मन में भक्ति अपार।
क्षीरसागर अमर कथा, विष्णुपुरी रसधार।।

28-
मेघ रूप में दरस को, अति लालषा सुहाय।
मां लक्ष्मी सेवा मना, प्रभु विष्णु वर पाय।।

29-
श्री विष्णु वरदान का, पल पल बीते जाय।
रही प्रतीक्षा राम की, सुन्दर अवसर आय।।

30-
भक्ति रस की साधना, श्री गुह चरित बताय।
श्याम चन्द्र की लेखनी, मन आनंद समाय।।
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