भागवत मर्मज्ञ गोस्वामी गोविंद बाबा ने 1008 भागवत कथा के सातवें दिवस कृष्ण उध्दव संवादए दत्तात्रेय के 24 गुरू की कथा एवं परीक्षित मोक्ष के प्रसंग की कथा का रसपान कराया

बाराद्वार (पंकज अग्रवाल) – भागवत मर्मज्ञ गोस्वामी गोविंद बाबा के पावन सानिध्य में बाराद्वार के श्री राधामदन मोहन मंदिर के 51 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 25 दिसंबर से 1 जनवरी तक अष्टोत्तर सहस्त्र 1008 श्रीमद् भागवत कथा सामूहिक ज्ञान यज्ञ का भब्य आयोजन बाराद्वार के जैजैपुर रोड में स्थित मटरू सेठ के प्लांट परिसर में किया गया है।

1008 भागवत कथा के सातवें दिवस ब्यासपीठ से भागवत मर्मज्ञ गोस्वामी गोविंद बाबा ने उपस्थित श्रोताओं को कृष्ण उध्दव संवादए दत्तात्रेय के 24 गुरू की कथाए परीक्षित मोक्ष के प्रसंग की कथा का श्रवण कराया। उन्होंने कृष्ण उध्दव संवादए दत्तात्रेय के 24 गुरू की कथाए परीक्षित मोक्ष के प्रसंग को लेकर संगीतमय कथा के प्रसंगो को विस्तार पूर्वक बताया। आचार्य गोस्वामी गोबिंद बाबा ने भक्तों को श्रीमद् भागवत कथा की महिमा बताते हुए कहा कि प्रभु की भक्तिए साधना व ध्यान लगाने से आनंद व आत्म संतोष की अनुभूति होती है।

उन्होने कहा कि प्रभु को निःस्वार्थ भाव से याद करना चाहिए। प्रभु को याद करते हुए फल प्राप्ति की लालसा नहीं रखनी चाहिएए यह विधान नही है। प्रभु को जब भी याद करो तो यही कहो हे प्रभु आप आनंद पूर्वक हमारे निवास पर पधारो एवं विराजमान रहे। जब प्रभु आपके घर पर रहने लगेंगे तो वह सब कुछ स्वतः मिल जाएगाए जो आप पाना चाहते है या जिसकी आपको जरूरत है। आगे की कथा में उन्होने बताया कि भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं में कबूतर, पृथ्वी, सूर्य, पिंगलाए वायुए मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाशए जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, अग्नि, चंद्रमाए कुमारी कन्या, सर्प, तीर ;बाणद्ध बनाने वाला, मकडी, भृंगी, अजगर और भौंरा ;भ्रमरद्ध हैं।

परीक्षित ने ऋषि के शाप को अटल समझकर अपने पुत्र जनमेजय को राज पर बिठा दिया और एक खंभे पर ऊंची महल पर सब ओर से सुरक्षित होकर रहने लगे। सातवें दिन तक्षक ने आकर उन्हें डस लिया और विष की भयंकर ज्वाला से उनका शरीर भस्म हो गया। कहते हैंए तक्षक जब परीक्षित को डसने चला तब मार्ग में उसे कश्यप ऋषि मिले।

गोस्वामी गोविंद बाबा ने कथा के अंतिम दिन सुकदेव द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई गई एवं श्रीमद् भागवत कथा को पूर्णता प्रदान करते हुए कथा में विभिन्न प्रसंगो का वर्णन किया। अंतिम दिवस भागवत सुनने के लिए बडी संख्या में श्रद्धालु कथा स्थल पहॅूचे एवं अंत में प्रसाद प्राप्त करते हुए वापस अपने घर लौटे।
