अवैध रेत उत्खनन से महानदी का सीना छलनी, प्रशासन मौन—सक्ती की पहचान खतरे में, खनिज विभाग और कलेक्टर की सह पर आधी रात को चल रहा खेल

सक्ती। जिले में अवैध रेत उत्खनन का कारोबार बेलगाम हो चुका है। महानदी और उसकी सहायक नदियों से रात-दिन ट्रैक्टर, डंपर और हाईवा भर-भरकर रेत की निकासी की जा रही है। आलम यह है कि न केवल नदी का स्वरूप बिगड़ रहा है बल्कि पर्यावरण पर भी गंभीर संकट मंडराने लगा है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह सब प्रशासन की आंखों के सामने हो रहा है, लेकिन कार्रवाई सिर्फ दिखावे तक सीमित है।
आधी रात को चलता माफियाओं का खेल
सूत्रों के मुताबिक जिले के आधा दर्जन से अधिक स्थानों पर बिना अनुमति के खनन धड़ल्ले से जारी है। सबसे ज्यादा सक्रियता आधी रात को देखी जाती है, जब माफिया नदी किनारे मशीनें और वाहन लगाकर धड़ाधड़ रेत निकालते हैं। इसके बाद मोटी रकम पर इसकी बिक्री होती है। इस पूरे खेल से शासन को लाखों रुपए का राजस्व नुकसान झेलना पड़ रहा है।
ग्रामीणों की पीड़ा और पर्यावरण संकट
ग्रामीणों का कहना है कि लगातार खनन से महानदी का सीना छलनी हो चुका है। जगह-जगह गहरे गड्ढे बन गए हैं, जिससे बरसात के दिनों में बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है। नदी किनारे बसे गांवों में मिट्टी कटाव, भू-जल स्तर में गिरावट और खेतों की उर्वरता घटने जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं। जानकारों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो भविष्य में नदी का प्राकृतिक प्रवाह पूरी तरह प्रभावित हो जाएगा।
आस्था की नगरी पर लग रहा दाग
सक्ती जिला अपनी धार्मिक धरोहरों—चंद्रहासिनी धाम और महामाया मंदिर—के लिए जाना जाता है। लेकिन आज यहां खनन माफियाओं का बोलबाला है। लोग कहते हैं कि आस्था और संस्कृति से पहचान बनाने वाला जिला अब अवैध रेत उत्खनन के कारण बदनामी झेल रहा है।
कार्रवाई सिर्फ कागजों तक
ग्रामीणों का आरोप है कि अवैध उत्खनन की शिकायतें कई बार की गईं, लेकिन कार्रवाई महज औपचारिक रही। जब्त वाहन कुछ ही दिनों में छोड़ दिए जाते हैं, जिससे माफियाओं के हौसले और बुलंद हो जाते हैं। प्रशासन के इस रवैये से यह संदेश जा रहा है कि कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए होती है।
लोगों की मांग
स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से तत्काल सख्त कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले समय में सक्ती जिले की पहचान धार्मिक स्थल और संस्कृति नहीं, बल्कि अवैध खनन का गढ़ बनकर रह जाएगी।