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मेरी नहीं तो किसी की नहीं” – 15 साल की किशोरी की कुल्हाड़ी से हत्या, 28 दिन बाद हत्यारा गिरफ्तार

जबलपुर, 3 सितंबर (संवाददाता):
पाटन थाना क्षेत्र के ग्राम सकरा में 15 वर्षीय किशोरी की निर्मम हत्या के 28 दिन बाद पुलिस ने फरार आरोपी राकेश रैकवार (22) को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी ने शादी से इंकार करने पर किशोरी को कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया था।

पुलिस के अनुसार, वारदात 5 अगस्त की सुबह तड़के हुई, जब आरोपी छत काटकर घर में घुसा और सोती हुई किशोरी पर कुल्हाड़ी से वार कर उसकी हत्या कर दी। घटना के वक्त घर में मौजूद किशोरी की छोटी बहन ने आरोपी को भागते हुए देखा और शोर मचाया। ग्रामीणों ने तत्काल पाटन थाना पुलिस को सूचना दी।

❝मेरी नहीं तो किसी की नहीं❞ — आरोपी ने मां से कही थी बात

जानकारी के अनुसार, राकेश रैकवार लंबे समय से किशोरी को स्कूल आते-जाते परेशान करता था। जब किशोरी ने उससे बात करने से इनकार कर दिया, तो आरोपी उसकी मां के पास जाकर शादी का प्रस्ताव रखने पहुंचा। मां ने स्पष्ट रूप से यह कहकर मना कर दिया कि उनकी और राकेश की जाति अलग है, इसलिए यह विवाह संभव नहीं।

इस पर आरोपी ने धमकी भरे लहजे में कहा, “अगर वह मेरी नहीं हुई, तो मैं उसे किसी और की भी नहीं होने दूंगा।” इसके बाद से उसने बदले की नीयत से वारदात की योजना बनानी शुरू कर दी।



जंगल में छिपा दी थी हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी

हत्या के बाद आरोपी फरार हो गया था। उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस अधीक्षक संपत उपाध्याय ने ₹10,000 का इनाम घोषित किया था। मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीम ने आरोपी को पड़ोसी जिले से गिरफ्तार किया, जहां वह मजदूरी कर रहा था।

पुलिस पूछताछ में आरोपी ने स्वीकार किया कि उसने हत्या के बाद कुल्हाड़ी को जंगल में छिपा दिया था। पुलिस ने मौके पर जाकर हथियार बरामद कर लिया है। आरोपी को मंगलवार को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया।

पुलिस का बयान:

पाटन थाना प्रभारी ने बताया कि,

> “यह एक सुनियोजित हत्या थी, जो नाबालिग लड़की द्वारा शादी से इंकार किए जाने के कारण की गई। आरोपी को कड़ी सुरक्षा में न्यायालय में पेश किया गया और आगे की जांच जारी है।”






📌 समाज के लिए सबक:

यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि किशोरों और युवाओं में बढ़ती असहिष्णुता और एकतरफा प्रेम की मानसिकता किस हद तक घातक हो सकती है। जरूरत है कि अभिभावक, समाज और शैक्षणिक संस्थाएं ऐसे मामलों को गंभीरता से लें और समय रहते बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करें कि “ना” को स्वीकार करना भी एक परिपक्वता है।

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