कभी प्रदेश में प्रसिद्ध रहे सक्ती के बाजार को अब अपनी पहचान के लिए करना पड़ रहा संघर्ष

- बुधवारी बाजार अपने उत्कर्ष के दिनों में सबसे अधिक रावत बाजार सांस्कृतिक महोत्सव मेला के रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध रहा
- व्यापारियों के लिए आर्थिक समृद्धि का गढ़ रहे बाजार में अब बैठने तक की जगह नहीं
सक्ती- कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में लेनदेन सिस्टम से उन्नत स्थिति में बाजरो अर्थव्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक एवं राजतंत्र स्थिति में उत्थान, पतन के कारण राजनीतिक स्वरूप में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगे सक्ती का बुधवारी और गुरुवारी बाजार लोक धर्मी उच्च से विस्तृत हुए थे, तब जनसंख्या बड़े ग्राम से भी कम थी फिर भी इस छोटे से कस्बेनुमा स्थान को ग्रामीण जन शहरी जीवन जीने वाले के रूप में संबोधित करते थे। बाजार में लोगों के बीच में नैतिकता की दृष्टि से विश्वास या वाणिक वादी अर्थव्यवस्था सुधरे थी राजतंत्र व्यवस्था में शिक्षा जन सामान्य के लिए दिवा स्वप्न की भांति था।
अंग्रेजी शासन काल में सक्ती स्टेट सेंट्रल प्रोविंस एवं बरार के अंतर्गत सबसे छोटे स्टेट के रूप में मान्य रहा 1929 से 1930 ईस्वी में स्वर्गीय लीलाधर सिंह को राजा बहादुर की उपाधि से विभूषित किया गया। आजादी के पश्चात सक्ती भारतीय संघ में मर्ज हो गया। सक्ती का बुधवारी बाजार अपने उत्कर्ष के दिनों में सबसे अधिक रावत बाजार सांस्कृतिक महोत्सव मेला के रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध रहा। संभवत अविभाजित मध्य प्रदेश और उसके पूर्व भी यदुवंशियों का सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध मेला था। ग्रामीण जनों की भीड़ स्वाभाविक रूप से उमड़ती थी, विशेष कर पुरानी सक्ती तहसील के लोग अन्यत्र स्थान में रहने वाले लोग चाहे किसी भी प्रदेश में कमाने खाने गए हो। रौताही मेले में अवश्य शिरकत करने आते थे। शादी विवाह की रिश्ते भी मेल मिलाप के बाद चलते थे स्मरणीय है। सक्ती में म्यूनिसिपल की स्थापना 100 वर्ष पूर्व हो चुकी थी उसी के द्वारा यह संचालित किया जाता रहा है।
बाजार में गम्मत एवं सर्कस झूले विशेष आकर्षण के केंद्र हुआ करते थे –
सक्ती की स्थापना हरि गुर्जर नामक दो भाइयों ने अपनी शक्ति के बल से विजयादशमी के दिन की थी इसलिए दशहरा उत्सव भी भव्य रूप से मनाया जाता था। यहां के मवेशी बाजार की प्रसिद्ध अंतर प्रांतीय थी। नगर पालिका परिषद के साथ के प्रमुख साधन के रूप में मान्यता बाजार ऑफिस एवं मवेशियों की खरीदी बिक्री की ऑफिस अलग से थी। कालांतर में मवेशी एवं बाजार ठेकेदार पुलिस प्रशासन का हस्तक्षेप बिचौलिए एवं म्युनिसिपल का अनुचित हस्तक्षेप बाजार को गर्त के रूप में धकेलने में सक्षम हो गया। राजनीतिक कारण भी रहे। सन 1980 तक रौताही मिला अच्छी तरह भरा, उस समय चार-पांच मेल शिवरीनारायण पीथमपुर रायगढ़ और दूरी धाम मेले में छोटे व्यापारी मालामाल हो जाया करते थे। 18 टॉकीज टूरिंग में लेकर बाद कई महीने तक चलती थी। धार्मिक रोमांटिक एवं छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक थीम भी फिल्में खूब चलती थी। नई फिल्में आए की विशेष स्रोत हुआ करते थे। बाजार में गम्मत एवं सर्कस झूले विशेष आकर्षण के केंद्र हुआ करते थे बाजार में व्यवसाय करने वाले बताते हैं आठ दिनों की बिक्री एक ही दिन में हो जाया करती थी।
बाजार ग्राउण्ड फुटबॉल के लिए रहा है प्रसिद्ध-
धान मुख्य उपज के अतिरिक्त यहां सब्जियों की खेती भी खूब होती है। फसल चक्र परिवर्तन का कार्य बहुत पहले से प्रचलित है। सक्ती तहसील पहले रायगढ़ जिले में फिर बिलासपुर जिले में और स्वयं जिला बनने के पूर्व मात्रा जिले जांजगीर चांपा के अंतर्गत स्वतंत्रता के बाद आता रहा। बाजार ग्राउंड में यहां के नामी फुटबॉल खिलाड़ी अभ्यास करते थे, जिसमें राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह भी एक प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं।
167 दुकान व मकान को हटाने की हुई थी कार्यवाई, कांग्रेस को झेलना पड़ा था विधानसभा चुनाव में नुकसान-
समय परिवर्तन के साथ बाजार के भौगोलिक स्वरूप में परिवर्तन आते गया और बेजो कब्जा की बाढ़ के कारण पूरा बाजार पट गया। एक समय ऐसा भी आया बाजार के लिए स्थान भी ना बचा। राजस्व विभाग भी मूक दर्शक बनकर बैठा रहा। गणतंत्र एवं स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम यही बाजार ग्राउंड में होते थे। बीते विधानसभा चुनाव के पूर्व बाजार को बेजा कब्जा से मुक्त कराकर नए नवनिर्माण की योजना बनी। कलेक्टर के आदेश से नया निर्धारण किया गया। प्रशासनिक कार्रवाई से प्रभावित जनमानस में सात्विक क्षोभ की अभिव्यक्ति हुई। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप दो वर्णों को छोड़कर बाकी 16 वार्डों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई। दरअसल बाजार के साथ सक्तीवासी कलेक्टर तथा पुलिस अधीक्षक कार्यालय की मांग सक्ती नगर के आसपास करने के पक्ष में थे जब यह कार्यालय जेठा में अस्थाई रूप से स्थापित किया गया, तब व्यापारियों में इसका विरोध खुलकर किया गया। अब सत्ता परिवर्तन के बाद प्रदेश में एक बात तथ्य के रूप में संदर्भित किया जाने लगा कि सक्ती में स्थाई कार्यालय की मंशा आखिर कब तक पूरी होगी।
क्या पुनः लौट पाएगा बुधवारी बाजार का गौरव-
बाजार आज अपने वर्तमान स्वरूप में शमशान वैराग्य की भूमिका में है। नए बनने वाले भवन का क्या स्वरूप होगा भवन किसको किसको प्राप्त होगा? नए बाजार का स्वरूप क्या होगा? क्या पुराने गौरव बाजार के लौटेंगे, बाजार में जन सामान्य की सहभागिता कैसी होगी? क्या बाजार में जिला मुख्यालय भवन का अलग से स्टडी रूम बनेगा? जैसा कि पूर्व कलेक्टर ने सपना संजोया था। बाजार प्लेग्राउंड का भौगोलिक स्वरूप खिलाड़ियों के अनुरूप होगा या नहीं? रौताही बाजार का भव्य रूप प्राप्त होगा या राजिम की तरह सक्ती के रौताही मिले को संस्कृत प्रभावित के रूप में प्रसिद्धि दिलाने के लिए प्रदेश सरकार अपनी ओर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर व्यवस्थापन खर्च के रूप में स्थाई रूप से मोटी रकम जनता की सहभागी कमेटी के साथ संचालन हेतु प्रदान करें ऐसी जन अपेक्षा है। सांस्कृतिक मूल्य अक्षुण्ण रहे इसके लिए पैसे का कोई मूल्य नहीं है। भव्य बिल्डिंग, मॉल, व्यावसायिक परिसर, किराए घर, भू माफियाई तर्ज पर बने(कानून कायदों को ताक में रखकर) मानवीय संवेदना को प्रकट नहीं करते। पुलिस प्रशासन के भवन के सभी बाजार में निर्माण के पक्ष में हैं। बशर्तें पुलिस, जनता की मित्र और विनम्र बने अपराधियों में पुलिस का खौफ हो। जनता यह ना कहे कि संभल के रहना अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से और हां बाजार में शराब बिक्री का केंद्र ना बनाया जाए चाहे अस्थाई हो या स्थाई स्मरणीय है कि बुधवार में पूर्व में जहर खुरानी की घटना हो चुकी है। वहीं गौ तस्करी भी की जाती रही है। बाजार को जीवन दान देने वाले बंधवा तालाब के विस्तार, जल शुद्धी, जल स्तर, मछली पालन, अतिक्रमण, नहर से जोड़ने की प्रक्रिया भी पूर्व में किए जाने की आवश्यकता है। बाजार ग्राउंड में राजनीतिक सम्मेलन कानून की व्यवस्था के तर्ज पर हो उपद्रवी मानसिकता के अंतर्गत नहीं। तभी बाजार अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त कर सकेगा।