
* प्रसिद्ध धार्मिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक स्थलों से मिलेगी ज़िले को एक नई पहचान
सुमित शर्मा, सक्ती
सक्ती। सक्ती अब प्रदेश के उन जिलों में शामिल हो जाएगा जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद होगी। प्रदेश में ऐतिहासिक महत्व पर रखने वाला सक्ती अब जिले के रूप में अस्तित्व में आने वाला है। यहां के प्रसिद्ध धार्मिक ,प्राकृतिक, ऐतिहासिक स्थल राज्य ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों तथा देश में भी प्रसिद्ध है। चंद्रपुर में स्थित मां चंद्रहासिनी , अड़भार में स्थित मां अष्टभुजी, सक्ती नगर में स्थित मां महामाया देवी, सक्ती से 12 किलोमीटर दूर तुर्री धाम, दमाऊ धारा, रैन खोल जैसे स्थल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अब यह सक्ती जिले के अस्तित्व में आने के बाद सक्ती को पूरे प्रदेश में एक नई पहचान दिलाएंगे।
चंद्रपुर का चंद्रहासिनी मंदिर-
चंद्रपुर में महानदी के तट पर चंद्रहासिनी देवी मंदिर स्थित है हर साल नवरात्रि की पूर्व संध्या पर यहां बहुत बड़ा आयोजन होता है यहां पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है उड़ीसा जैसे दूसरे राज्यों से भी लोग यहां घूमने आते हैं दिन प्रतिदिन यह पवित्र और पर्यटन स्थल के लिए एक बड़ा स्थान बनता जा रहा है। चंद्रपुर की खास बात यह है कि मांड नदी ,लात नदी और महानदी का यह संगम स्थल है, जहां मां चंद्रहासिनी देवी का मंदिर स्थित है। यह सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है।

तुर्रीधाम में पहाड़ का सीना चीर कर बहती हुई अनवरत जलधारा-
तुर्रीधाम के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर भगवान शिव का है प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि तथा श्रावण मास में यहां मेला आयोजित किया जाता है। तुर्री धाम में पहाड़ का सीना चीर कर बहती हुई अनवरत जलधारा देश में ऐसे अनेक ज्योतिर्लिंग है जहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। ऐसा ही एक स्थान है। सक्ती क्षेत्र अंतर्गत तुर्री धाम की खास बात यह है कि यह जलधारा कहां से बह रही है इसका अब तक पता नहीं चल सका है। आज भी यह शोध का विषय बना हुआ है कि आखिर पहाड़ी क्षेत्रों से पानी का स्रोत कहां से है, जहां हर समय पानी की धारा बहती रहती है। दिलचस्प बात यह है कि बरसात में जल धारा का बहाव कम हो जाता है ,वही गर्मी में जब हर कहीं सूखे की मार होती है उस दौरान जलधारा में पानी का भाव बढ़ जाता है। इसके अलावा जलधारा के पानी की खासियत है की यह वर्षों तक खराब नहीं होता।अपनी खास विशेषताओं के कारण ही आज तुर्री धाम की छत्तीसगढ़ नहीं वरन देश के अन्य राज्यों में भी अपनी एक अलग पहचान है। अब पुनः इसे संवारने के लिए बेहतर प्रयास होगा क्योंकि अब सक्ती जिला जल्द ही अस्तित्व में आ जाएगा।

अड़भार एक अद्भुत स्थल –
प्राचीन नगर अड़भार में मां अष्टभुजी देवी की प्रतिमा विराजमान है। पुरातत्व विभाग द्वारा यह आरक्षित है। यहां पांचवी छठवीं शताब्दी के पूरा अवशेष मिलते हैं। इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्टद्वार के रूप में मिलता है। नवरात्र में मां अष्टभुजी के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगता है, पूरे प्रदेश के यहां भक्तों पहुंचते हैं। अष्टभुजी माता का मंदिर इस नगर में चारों ओर बने आठ विशाल दरवाजों की वजह से शायद इस का प्राचीन नाम अष्ट द्वार रहा होगा और धीरे-धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अड़भार हो गया। आज भी यहां के लोगों को घरों की नींव खोदते समय प्राचीन टूटी फूटी मूर्तियां या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के प्राचीन धातु के कुछ ना कुछ सामान अवश्य मिल जाते हैं। इसलिए यह पूरे प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान रखता है अब यह सक्ती जिले में आ गया है। जब भी अब सक्ती जिले की बात आएगी तो मां अष्टभुजी मैया का मंदिर सर्वप्रथम लोगों के जेहन में याद आएगा।

दमाऊ धारा एक ऐतिहासिक स्थल –
नगर से 20 किलोमीटर की दूरी पर कोरबा मार्ग में स्थित दमाऊ धारा यह स्थान पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है यहां एक ओर प्राकृतिक पानी का जलप्रपात, गुफाएं, राम जानकी मंदिर ,राधा कृष्ण मंदिर, ऋषभदेव मंदिर इत्यादि हैं। इसके साथ ही अन्य पर्यटन स्थल पंचवटी ,सीतामढ़ी आदि आकर्षित करने वाले पर्यटन स्थल हैं। सक्ती में एक प्रसिद्ध सौंदर्य पिकनिक स्थान के रूप में इसे जाना जाता है। इस जगह की खास बात यह है कि इसमें एक पर्यटन स्थल के रूप में आवश्यक अधिकांश सुविधाएं हैं जैसे झरने गुफाएं और मंदिर। दमाऊ धारा में बड़े मेले का आयोजन जनवरी महीने में हर साल आयोजित किया जाता है। प्रत्येक सूर्य ग्रहण पर कई स्थानों से साधु दमाऊ धारा में एकत्रित होते हैं और ग्रहण समाप्त होने के बाद कुंड में स्नान करते हैं। झरने के पास की दीवारों में से एक पर एक शिलालेख जिस पर कई भाषाओं में प्राचीन लेखन है लोक कथाओं में कहा जाता है कि इसमें उस समय की दुनिया की सभी संभावित भाषाओं में कोई ना कोई संदेश लिखा होता है।
