सक्ती जिला

छत्तीसगढ़ में आज धूमधाम से मनाया जाएगा हरेली त्‍योहार, गांव-गांव में चहल-पहल


सक्ती | 24 जुलाई 2025। छत्तीसगढ़ की धरती पर आज पारंपरिक उल्लास और हर्षोल्लास के साथ हरेली त्‍योहार मनाया जा रहा है। कृषि संस्कृति और पर्यावरण से जुड़े इस खास पर्व का ग्रामीण अंचलों में विशेष महत्व है। खेत-खलिहानों से लेकर गौठानों और मंदिरों तक आज सुबह से ही रौनक दिखाई दे रही है।

क्या है हरेली पर्व का महत्व?

“हरेली” शब्द ‘हरियाली’ से बना है, जो खेतों की हरियाली और समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व मुख्य रूप से किसानों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें वे अपने कृषि उपकरणों, बैलों और कृषि से जुड़े संसाधनों की पूजा करते हैं।

परंपरा के अनुसार, आज के दिन लोग लोहे के औज़ारों, हल, बैलगाड़ी और कृषि यंत्रों की विधिवत पूजा करते हैं। साथ ही घरों में नीम की पत्तियां दरवाज़ों पर लगाई जाती हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जा से बचाव हो सके।

गौसेवा और बैलों की सजावट

हरेली पर विशेष रूप से गौ माता और बैलों की पूजा की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैलों को सजाकर उन्हें हल चलाने के प्रतीक रूप में खेतों में ले जाया जाता है। बच्चों में ‘गेड़ी चढ़ने’ की परंपरा भी जीवित है, जिसमें वे लकड़ी की ऊंची गड़ी पहनकर गांव में घूमते हैं।

पर्यावरण और परंपरा का संगम

हरेली छत्तीसगढ़ की जैविक और पर्यावरणीय चेतना को भी दर्शाता है। आज के दिन पेड़-पौधे लगाने की परंपरा भी निभाई जाती है, जिससे यह त्योहार सिर्फ आस्था का नहीं, प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक बन चुका है।



निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में हरेली सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि खेती, पर्यावरण और परंपरा का उत्सव है — जो लोकजीवन को हरियाली, खुशहाली और एकता से जोड़ता है।


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