“छेरछेरा कोठी के धान ला हेरहेरा”,पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया छेरछेरा पर्व, डंडा नृत्य और वाद्य यंत्रों की मधुर धुन ने किया ग्रामीणों को आकर्षित, सकर्रा में रही छग के प्रथम त्योहार की धूम

हुपेंद्र साहू
सकर्रा| छेरछेरा पर्व के अवसर पर गुरुवार को लोगों ने खुलकर अन्न दान किया। बच्चों में पर्व को लेकर काफी उत्साह नजर आया, जिन्होंने घर-घर जाकर अन्न दान मांगा। इसके लिए सुबह से ही बच्चों की टोलियां निकल पड़ी थीं। उन्होंने पारंपरिक गीत छेरिक छेरा, छेर बरतनीन गाते हुए घर-घर जाकर लोगों से अन्नदान मांगा। सुबह होते ही गांव की गलियों की बस्तियों में बच्चों की टोलियां छेर-छेरा… कोठी के धान हेरहेरा… की गुहार लगाते हुए पहुंचती रही। पर्व को लेकर ग्रामीण अंचल के लोगों में पखवाड़े भर पूर्व से ही उत्साह नजर आने लगा था और अपने-अपने स्तर पर लोगों ने पर्व मनाना भी शुरु कर दिया था। छेरछेरा मांगने वाले बच्चों में जो उत्साह था, उससे कहीं अधिक उत्साह दान करने वालों में दिखा। जिस घर के भी दरवाजे पर बच्चे पहुंचे, लोगों ने पूरे उल्लास के साथ उन्हें धान अथवा चावल दान कर छेरछेरा पर्व की खुशियां बांटी।
देवी अन्नपूर्णा की हुई पूजा:
पर्व के अवसर पर धान की फसल लेने वाले किसानों ने सुबह देवी अन्नपूर्णा की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की। कृषक वर्ग ने अन्न की देवी अन्नपूर्णा को लक्ष्मी स्वरूप मानकर पूरी आस्था निष्ठा के साथ पूजा अर्चना की, इसके बाद घर की कोठी में रखे धान को दान कर घर-परिवार की खुशहाली की कामना की।
भगवती साहू ने बताया कि किसान कृषि कार्य से निवृत्त होने के बाद अच्छी पैदावार होने की खुशी में यह पर्व हर्षोल्लास से मनाते हैं। मांगने वालों को हर परिवार के लोग यथासंभव धान, चावल के साथ रुपए भी दान करते
_मान्यताएं: भगवान शिव द्वारा पार्वती के घर जाकर भिक्षा मांगने के प्रतीक स्वरूप यह पर्व
बुजुर्गाें ने बताया कि भगवान शिव द्वारा पार्वती के घर जाकर भिक्षा मांगने के प्रतीक स्वरूप यह पर्व मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। छेरछेरा पर्व में रामायण मंडली, लीला मंडली एवं समितियों द्वारा बाजा, पेटी बजाते हुए घर-घर जाकर लिया जाता है। नगर तथा अंचल में छोटे बच्चों के साथ बुजुर्गों ने भी बड़े उत्साह के साथ कांवर, थैला लेकर घर-घर से छेरछेरा दान मांगा। यह सिलसिला सुबह से शाम तक चलता रहा।
