कमुन खूंटे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर, छह माह सेवा देने के बाद भी भुगतान और बहाली से वंचित

सक्ती। “मेहनत करो और फिर भी हक़ न मिले तो इससे बड़ा अन्याय क्या हो सकता है।” यह बात सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र जैजैपुर में कार्य कर चुकीं कमुन खूंटे के हालात को बयां करती है। छह माह तक वार्ड आया के पद पर सेवाएं देने के बावजूद उन्हें आज तक मानदेय नहीं मिला। सेवा समाप्त कर दिए जाने से वे बेरोजगारी और आर्थिक संकट की चपेट में आ चुकी हैं।
छह माह तक दी सेवा, फिर भी नहीं मिला हक
कमुन खूंटे ने वार्ड आया के रूप में पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ कार्य किया। मरीजों की देखभाल से लेकर अस्पताल की दैनिक गतिविधियों में उन्होंने अपना समय और श्रम समर्पित किया। लेकिन सेवा समाप्त होने के बाद न तो उनका भुगतान हुआ और न ही उन्हें दोबारा कार्य पर रखा गया।
आर्थिक संकट ने बढ़ाई परेशानी
भुगतान न मिलने और सेवा से हटाए जाने के बाद कमुन खूंटे का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। घर चलाने में कठिनाइयाँ बढ़ गई हैं। वे अपनी मेहनत की कमाई पाने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगा रही हैं, लेकिन अब तक उनकी सुनवाई नहीं हुई है।
आवेदन देकर लगाई गुहार
इस मामले को लेकर कलेक्टर सक्ती को आवेदन सौंपा गया है। आवेदन में कहा गया है कि मानवीय आधार पर न केवल उनका बकाया भुगतान किया जाए बल्कि उन्हें पुनः सेवा में बहाल किया जाए, ताकि उनका जीवनयापन सामान्य हो सके।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
गांव और क्षेत्र के लोग भी इस मामले में प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि एक महिला ने पूरी ईमानदारी से छह माह सेवा दी, फिर भी उसे उसका हक न मिलना अन्याय है। यदि प्रशासन ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लेगा तो गरीब और जरूरतमंद लोगों का भरोसा तंत्र से उठ जाएगा।